behavior="scroll" height="30">हिन्दी-हरियाणवी हास्व्यंग्य कवि सम्मेलन संयोजक एवं हिन्दी-हरियाणवी हास्व्यंग्य कवि योगेन्द्र मौदगिल का हरियाणवी धमाल, हरियाणवी कविताएं, हास्य व्यंग्य को समर्पित प्रयास ( संपर्कः o9466202099 / 09896202929 )

शनिवार, 20 दिसंबर 2008

ताऊ ताई दोनों फिल्मी

एक बर की बात भाई....
ताऊ का नवा-नवा ब्याह होया था. अक उसकी नौकरी घणी दूर लाग गी.
वो नवी-नवेल्ली ताई नै घरां छोड़ कै दूर देस म्हं चल्या गया.
वहां तो बस नौकरी अर फिल्में उसका सहारा थी पर वक्त बीत्या अर ताऊ लौट कै गाम मैं आया तो घरआली नै देखते ई गश खाग्या क्यूंकि घरआली पेट तै थी........

थोड़ी देर म्हं हिम्मत सी करके उठ्या एक फिलमी गीत गा कै बूझण लाग्या..

ये क्या हुआ कैसे हुआ कब हुआ कुछ तो बोलो.....

ताई नै बी पाछै घणी फिलम देख राक्खी थी..
गाणे मैं ई बोल्ली

यूं ही कोई मिल गया था सरे राह चलते-चलते
नोटः यह दृष्टांत असली ताऊ का नहीं नकली ताऊ का है

6 टिप्‍पणियां:

  1. घणी बुरी करी भाई ताऊ म्ह तो !

    रामराम !

    जवाब देंहटाएं
  2. बेचारी ताऊ गेल्लै तो घणी माडी होई.

    जवाब देंहटाएं
  3. राम राम बहुत बुरा हुआ,लेकिन यह सब बाते आप को केसे मालूम??

    जवाब देंहटाएं
  4. यूं ही कोई मिल गया था सरे राह चलते-चलते
    ....
    अरे मौदगिल साहब,
    कहीं वो आप ही तो नहीं थे.

    जवाब देंहटाएं
  5. मौदगिल साहब,
    सरे राह चलते चलते जो मिल गया था...आख़िर वो है कौन ??

    जवाब देंहटाएं
  6. चलते चलते राह में कोई मिल गया था ..सब जरा बताये भी योगेन्द्र कौन मिला था . बढ़िया पोस्ट .

    जवाब देंहटाएं

आप टिप्पणी अवश्य करें क्योंकि आपकी टिप्पणियां ही मेरी ऊर्जा हैं बहरहाल स्वागत और आभार भी