behavior="scroll" height="30">हिन्दी-हरियाणवी हास्व्यंग्य कवि सम्मेलन संयोजक एवं हिन्दी-हरियाणवी हास्व्यंग्य कवि योगेन्द्र मौदगिल का हरियाणवी धमाल, हरियाणवी कविताएं, हास्य व्यंग्य को समर्पित प्रयास ( संपर्कः o9466202099 / 09896202929 )

रविवार, 24 अगस्त 2008

हो गये रै...

चार दाणे हो गये रै.
लोग स्याणे हो गये रै.

बाप नै बी आंख भिच्ची,
पूत काणे हो गये रै.

ईब के पिट्टेगा ताड़ी,
इब्तो न्याणे हो गये रै.

के बखत सै कल के छोरे,
देख हाणे हो गये रै.

खंजरों कै ताप चढ़ग्या,
सिर ठिकाणे हो गये रै.

चांद पै चांदी के बाल,
हम पुराणे हो गये रै.
--योगेन्द्र मौदगिल

6 टिप्‍पणियां:

  1. चांद पै चांदी के बाल,
    हम पुराणे हो गये रै.


    सत्यमेव जयते! ;-)

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  2. चांद पै चांदी के बाल,
    हम पुराणे हो गये रै.



    सत्यवचन !!!!!!!!!!!!

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  3. के बखत सै कल के छोरे,
    देख हाणे हो गये रै.


    भाई बख्त बख्त की बात हुया
    करै सै ! कदे कदे बख्त भी
    किम्मै माड़ा पड़ ज्यासै !

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  4. विप्रवर, हमको हरयाणवी थोड़ी कम
    समझ आंदी तो चाँद पै चांदी का
    अंदाज ही लगा रहे हैं ! :) पढ़ पढ़ के
    ही आनद आरहा है ! धन्यवाद !

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  5. बंधुऒं,
    आपका आदेश हो तो कठिन शब्दों के अर्थ भी दूं..
    लेकिन यह तो पता लगे कि,
    कौन सा शब्द किसके लिये..?
    टिप्पणी में उल्लेख करियेगा..
    शेष कुशल-मंगल.
    आप सब भी सकुशल होंगे.
    इस विश्वास के साथ.
    -योगेन्द्र मौदगिल

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  6. अरे इतनी सुन्दर सुन्दर कविता केसे छुट गई, बहुत ही ग्यान बर्धक चार दान होगे..
    धन्यवाद

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