खाड़ा सै भई खाड़ा सै.
बखत घणाइ माड़ा सै.
क्यूक्कर पुगैं नवाबी शोंक,
चार टके का हाड़ा सै.
उसतै के उम्मीद भला,
वो तो जिमी उघाड़ा सै.
बोल सीख के जीभ धरे,
दिल्ल म्हं भरह्या कबाड़ा सै.
छोरी खो दी फैस्सन नै,
छोरा भी लंगाड़ा सै.
भिंचे पेट महंगाई तै,
सबका ढील्ला नाड़ा सै.
--योगेन्द्र मौदगिल
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12 वर्ष पहले
superb sir
जवाब देंहटाएंछोरी खो दी फैस्सन नै,
जवाब देंहटाएंछोरा भी लंगाड़ा सै.
घणी जोरदार मार पटकी सै भाई !
इसी सांची सांची कहकै म्हारा तो
दिल ही लुट राख्या सै भाई तन्नै !
हम तो इंतजार म ही रहते सें की
कब भाई का हरियाणवी लट्ठ बाजै ?
यो थारै हरियाणवी लट्ठ न्यूं ऐ बाजते
रहने चाहिए ! शुभकामनाएं !
इस कविता के लिए तिवारी साहब
जवाब देंहटाएंका सलाम आपको ! सुंदर रचना !
छोरी खो दी फैस्सन नै,
जवाब देंहटाएंछोरा भी लंगाड़ा सै.
बिलकुल सही लिखा हे आप ने.
धन्य हे आप जो सभी को आईना तो दिखा रहे हे,
धन्यवाद
आधुनिकता की विसंगतियां!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है !!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंमै ज्यादा हरयाणवी नहीं जनता सर पर, ये सुनने में बहुत अच्छा लगता है. अब आपका ब्लॉग मिल गया है तो अपनी समझ को बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ.
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