behavior="scroll" height="30">हिन्दी-हरियाणवी हास्व्यंग्य कवि सम्मेलन संयोजक एवं हिन्दी-हरियाणवी हास्व्यंग्य कवि योगेन्द्र मौदगिल का हरियाणवी धमाल, हरियाणवी कविताएं, हास्य व्यंग्य को समर्पित प्रयास ( संपर्कः o9466202099 / 09896202929 )

शुक्रवार, 15 अगस्त 2008

कोई मेरा के कर्र लेगा

हरियाणा के एक गांव म्हं
हरे नीम की धनी छांव म्हं
ताऊ रस्ते म्हं जावै था
अर् अपणी मस्ती म्हं बेठ्या
मौल्लड़ एक गाणा गावै था
रै मैं तो दारू पी कै आऊंगा..
कोई मेरा के कर्र लेगा...
मैं तो सबनै आंख दिखाऊंगा..
कोई मेरा के कर्र लेगा...

ताऊ के कानों में पड़े
गाने के बोल
ताऊ का खून गया खौल
बोल्या रै
ठीक कह्वै सै बेट्टे
करण नै के कोई तेरी पूंझड़ पाड़ेगा
अक् तेरे लत्ते फाड़ेगा
अरै नौजवान
साच्ची तो या सै
अक् तू बखत तै पहल्यां होगया जवान
घूम-घूम मुश्टंड्या गेल
फैलगी तेरी जबान
हरियाणा के
तेरा तो कुछ बी कोनी
कर सकता हिंदुस्तान

ठाट तै बेच किल्ले
पी इंगलिस के पव्वे
पर्र याद रखियो बेट्टे
जिब गोड्यां की खतम होजेगी ग्रीस
तेरे मूंह पै मूतेंगें कव्वे

अरै मौल्लड़
या दारू पीणा
कुण सी शान बढ़ावै सै खानदान की..
अरै या तो नासकेत सै जहान की...
अरै बोग्गल..
तू तो इमरत समझ कै
यू जहर पीये जा--पीये जा..
अंतड़ियों नै बोच्चे-बोच्चे जीये जा..
मेरे कान्नी के दीद्दे फाड़ै से
वा देख...
फाट्टी साड़ी म्हं बेट्ठी
नो-नो आंसू रोती तेरी घरआली
गाल के बालकां की
मौज मस्ती देख झेंपते तेरे बालक
अरै अकल के अंधे
क्यूं अपणे घर खात्तर
हो रह्या सै दुरवासा का सराप
अरै झकोई
बण कै दिख्या अपणी जोरू का मरद
अर अपणे बालकां का बाप

फैंक दे इस बोत्तल सुसरी नै कूए म्हं
जुटज्या इमानदारी के साथ
मेहनत के जूए म्हं

भूल जा
भूल जा बेट्टे पाछली भूल
खुद संभाल ट्रैक्टर
अर बालकां नै भेज स्कूल
खुद संभाल ट्रैक्टर
अर बालकां नै भेज स्कूल

पर मौल्लड़ कै बात जंची कोनी
होर बी ऊंचा गाण लाग ग्या
इस खेत्ती नै निबटाऊंगां,
कोई मेरा के कर्र लेगा...
अड़ै कालोन्नी कटवाऊगा,
कोई मेरा के कर्र लेगा...
ताऊ बोल्या रै ठीक कह्वै सै मेरे लाल
जिब गीदड़ की मौत आवै
सुसरा शहर कान्नी जावै
निबट्या दे बेट्टे या खेत्ती
बेच दे इस पुरख्यां की जमीन नै
अर्र बेटा
बेचते बखत कतई मत सोचियो
ना उरै की ना परै की
ना खोट्टे की ना खरे की
ना मन्दर की ना चौपाल की
ना आंगन ना पुआल की
ना कूंए की ना घाट की
ना चूल्हे की ना खाट की
ना छत की ना रेत की
अरै बेट्टा कतई मत सोचियो
बाप बरगी हवेल्ली
अर मां बरगे खेत की

चौड़ा होकै बीज की की जगह
ईंटें दबवा दे इस खेत की कोख म्हं
तभी तो उस म्हं तै निकलेंगें
सोने बरगी गेहूं की बालियों की जगह
फुटों के गजों के हिसाब के मकान

अरे मेरे बावले नौजवान
यू ए हाल रह्या ना
तो यू पूरा देस
होजेगा कंकरीट का मसान

से गेहूं ये बाजरा ये ज्वार ये धान
सारे का सारा होजेगा
गुजरे बखत का सामान
सर इन महलां के शानदार बैडरूम के
कलफदार बिस्तरों पै
खा-खा कै ताकत की गोलियां
तू तैयार करेगा जोणसी नसल
वें के खा कै जीवेंगी ?
ईंट्टों की फसल..
बोल बेट्टे बोल के खावेंगी..
ईंट्टों की फसल अक् रेत्ते की रोटियां
बजरी का रैता अक् माट्टी के परौंठे
कंकरों की सब्जी अक् पत्थरों के कोफ्ते
क्यूं मेरे पूत
बात है के नहीं समझण की
अरै ईब बी बखत सै
बेट्टा
समझ ले..समझ ले..समझ ले..

पर मौल्लड़ क्याएं नै समझै था
होर बी चौड़ा होकै रेंक्या
रै मैं तो कूल्हों नै मटकाऊंगा,
कोई मेरा के कर्र लेगा..
सुणै के ताऊ,
मैं तो जींस पैहर कै गाऊंगा,
कोई मेरा के कर्र लेगा...
ताऊ बोल्या रै
बिल्कुल ठीक कह रह्या सै बेट्टे
कोई तेरा के कर्र लेगा
करेगा तो तेरे बाप का
जुणसा तनै इस दुनिया म्हं ल्याया
तों गांदा फिरै
अक् कोई मेरा के कर्र लेगा
ठीक बी सै
अक् तेरा के कर लेंगें
तू चाहे जींस पहर कै गा
चाहे जींस तार कै गा
फिल्मी गा चे इल्मी गा
गाम-ग्वांड की बहुऒं नै देख कै गा
चे अपणी ताई नै देख कै गा
स्कूल तै भाग्गण की खुसी म्हं गा
चे मास्टर के मरण की खुसी म्हं गा
मंदर आग्गै गा
चे दारू के ठेक्के आग्गै गा
बाब्बू के किल्ले बेच कै गा
चे हीरोहोंडा पै चूतड़ टेक कै गा
बस्स गा ले
तू तो गा ले
यें देख-देख कै सनीमे
तेरे पै यू जौणसा
गाण का भूत चढ़ रह्या सै ना
उसनै ठाकै गाए जा
कूल्हे मटका
दीदे मटका
गरदन पेट कमर मटका
छाती टांग बाजु सब मटका
जो जो मटक सकै उसनै मटका
जड़ै तै
नहीं मटक सकता
कोसिस कर
सर औड़ै तै बी मटक कै देख
ना मटक्या जावै
फेर इस ताऊ तै आकै बूझिये
अक् अड़ै तै क्यूक्कर मटकूं
अक् अड़ै तै क्यूक्कर मटकूं
अक् अड़ै तै क्यूक्कर मटकूं

5 टिप्‍पणियां:

  1. से गेहूं ये बाजरा ये ज्वार ये धान
    सारे का सारा होजेगा
    गुजरे बखत का सामान
    सर इन महलां के शानदार बैडरूम के
    कलफदार बिस्तरों पै
    खा-खा कै ताकत की गोलियां
    तू तैयार करेगा जोणसी नसल
    वें के खा कै जीवेंगी ?

    फेर इस ताऊ तै आकै बूझिये
    अक् अड़ै तै क्यूक्कर मटकूं


    भाई योगेन्द्र जी आज तो तन्नै ताऊ की
    आंख्यां के दीये चास दिए सें ! इसतैं सुथरी
    बधाई आज आजादी के दिन पर और कोई
    हो ही नही सकदी !
    व्यंग, दर्द, तड़प और सीख ! सब कुछ घाल
    दिया इस कविता मै ! जींवता रह मेरे शेर !
    और झंडे गाड़ता रह !
    ताऊ नै तेरे प घणा नाज सै !

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  2. योगेन्द्र जी ताऊ की एक एक बात ठीक हे, आप ने जिस ढ्ग से बधाई दी सच मे अनमोल हे, सब कुछ कह दिया, धन्यवाद

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  3. योगेन्द्र जी सच मे ऎसे नालयक बाच्चे आज कल होते हे,अब ताऊ भी क्या कर लेगा,लेकिन ताऊ ने उसे ही नही हम सब को सम्झाया बडे ढग से हे, फ़िर से इस लिये आया हु कि मेने इस कविता को अपने बच्चो को हिन्दी मे समझाया, ओर उन्हे बहुत अच्छी लगी, हम सब की ओर से आप का धन्यवाद इस सुन्दर कविता के लिये

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  4. भाटिया जी
    मेरा शब्दों का कोटा चूक गया
    आपने कविता का पठन ही नहीं मनन भी किया है
    आप जैसे पाठक बिरले है
    मैं आपको सादर नमन करता हूं

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