(स्रोत: "धूल म्हं लट्ठ" हरियाणवी हास्यव्यंग्य संग्रह)
धरम का खोट्टा करम का छोट्टा
उस माणस के जीण म्हं टोट्टा
गंगाजल का भर्र कै लोट्टा
बांच रह्या सै पोत्थी चोट्टा
जितना तगड़ा कस्या लंगोटा
उतना सोच म्हं आया टोट्टा
थाणे म्हं इन्साफ नै टोह्वै
दूध ना देवै कदे बी झोट्टा
कुछ तो खोट लुहारां मैं
अर्र कुछ अपणा लौह सै खोट्टा
--योगेन्द्र मौदगिल
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12 वर्ष पहले
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जवाब देंहटाएंवाह जी...बहुत बढ़िया लगी आपकी ये रचना!आज पहली बार आपके ब्लौग पर आई....आनंद आया पढ़कर!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव,कुछ तो दोष लुहार का भी हे ओर बाकी अपना लोहा ही खराब हे, धन्यवाद, पढते जाओ पढते जायो इतनी प्यारी गजले , कवितये हे
जवाब देंहटाएंअति सुंदर मौदगिल जी. पढ़कर मज़ा आ गया. मजाक की बात नहीं है लेकिन मुझे हमेशा आश्चर्य होता है की व्यंग्य अपना उद्देश्य खोये बिना भी इतना हास्यकर कैसे हो जाता है. बाहरी दिल्ली में रहा हूँ इसलिए हरयाणवी समझने में बिल्कुल भी मुश्किल नहीं हुई.
जवाब देंहटाएंदूध ना देवै कदे बी झोट्टा
जवाब देंहटाएंम्हारी तो झोट्टी भी नाट गी सै दूध
देण तैं अर थम बात कर रे हो झोट्टे का
दूध निकालण की ! :) :)
भाई मौदगिल जी आज पहली बार आपका
ब्लॉग देखा ! भई यो म्हारी किस्मत किम्मै
माड़ी थी जो इतना सुथरा माल मन्ने ना
दिख्या ! आज भाई हम तो धन्य होगे !
आज मन घण्णा परसन होग्या सै म्हारा !
आज इस तरियां लागे सै ज्यूँ म्हारा बिछडा
भाई मिलग्या सै ! अलग तैं मेल लिखरया सूं !
गंगाजल का भर्र कै लोट्टा
जवाब देंहटाएंबांच रह्या सै पोत्थी चोट्टा
gagal padhi meine. hariyaanvi samajhne me thodi dikkt to hui par samjh liya. achchhi hai.
mera blod dekhne k liye dhanywad
हरयाणवी में पहली बार कोई गजल पढी, कसम से मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंऐसी गजल पहली बार देखी
जवाब देंहटाएंपहले तो अश्चर्य हुआ फिर दिलासा दिया कि शायद मुझे पता नही…
आप सभी का धन्यवाद
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