के माणस की जात नै होया
घर के बारणे किक्कर बोया
सालगराम नै रोज नुहावै
पर पंडत नै दिल्ल ना धोया
बुरे काम का बुरा नतिज्जा
इब क्यूं माथ पकड़ कै रोया
उसी बखत आए थे चोर
जिब तू लांबी ताण कै सोया
गधा गधाई रह्वै सै प्यारे
गधे नै इब्लग बोज्झाई ढोया
उसपै दुनिया हंसी मौदगिल
नसे म्हं जिन्नै सबकुछ खोया
--योगेन्द्र मौदगिल
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13 वर्ष पहले








आपके व्यंग सटीक हैं, हरयाणवी पढने में कठिनाई होने के बावजूद जब तक पूरा नही पढ़ लिया, आपको छोड़ने का मन नही हुआ ! लिखते रहें !
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