ईब कड़ै का धरम करम सै
यू तो न्यूए लोक भरम सै
न्यूई तो वो खाग्या मार
दिल का बैरी घणा नरम सै
जद उसनै कोई सरम नहीं तो
तन्नै उसकी किसी सरम सै
मन्दर म्हं चौंप्पड़ बाज्जै सै
मूंह म्हं राम हाथ म्हं रम सै
ईब थाप कविता की रोट्टी
तवा कलम का घणा गरम सै
आंख खोल कै देख जरा
अर्जन का भाई अक्रम सै
बाहर तै करड़ा सै मौदगिल
पर भीत्तर तै घणा नरम सै
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12 वर्ष पहले
बाहर तै करड़ा सै मौदगिल
जवाब देंहटाएंपर भीत्तर तै घणा नरम सै
तो भाई जी आप की नरमी का फ़ायदा उठा कर आप के ब्लाग का लिन्क हम अपने ब्लांग http://sikayaat.blogspot.com/ पर देरहे हे,आप को कोई ऎतराज होगा तो हटा देगे.
राज जी, बिल्कुल सही लेकिन एक बात बताऊं कि जिनका आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है. वे बेचारे बेनामी ना रहें और क्या रहें. रही बात दूसरी कि जब हरियाणा एक्सप्रैस को आपने सुख दुख का साथी ही मान लिया तो फिर अपने को काहे की आपत्ति. हम तो यारों के यार हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे मौदगिल साहब ये पंक्तियाँ तो कमाल की हैं
जवाब देंहटाएंईब थाप कविता की रोट्टी
तवा कलम का घणा गरम सै
आंख खोल कै देख जरा
अर्जन का भाई अक्रम सै
बधाई स्वीकारें|