क्यूं दीद्दे मटकावै सै.
उपरां-तली जलावै सै.
घर की रखले घर भीत्तर,
क्यूं इब ढोल बजावै सै.
बुड्ढे की इज्जत बी राख,
दो रोट्टी तो खावै सै.
छोड़ तिलक, साफा, माला,
तू किसनै बहकावै सै ?
चोक्खे बखत की चोक्खी याद,
बींद-बींद म्हं आवै सै.
छोड़ 'मौदगिल' बोल बड़े,
बुरा बखत भरमावै सै.
--योगेन्द्र मौदगिल
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12 वर्ष पहले
बुड्ढे की इज्जत बी राख,
जवाब देंहटाएंदो रोट्टी तो खावै सै.
बहुत सही लिखा आपने ! बधाई
और शुभकामनाएं !
बुड्ढे की इज्जत बी राख,
जवाब देंहटाएंदो रोट्टी तो खावै सै.
आप ने इस कविता मे आज के हालत व्यान कर दिये,एक बाप की व्यथा.
धन्यवाद